Jab himmat tute to ye yaad rakhna

 Jab Himmat Tute To Ye Yaad Rakhna

Jab himmat tute to ye yaad rakhna ki har andheri rat ke bad ujala ata hai, After the darkest night there is always comes brightness day...

Jab himmat tute to ye yaad rakhna
Jab himmat tute to ye yaad rakhna



हम सभी को जीवन के दौर में कई बार निराशाओं और मुश्किलों का सामना करना पड़ता है,हम जीवन के दौर में कभी कभी इतना परेशान हो जाते हैं कि हमें कोई हल समझ नहीं आता।समझ नही आता कि क्या सही है क्या गलत है,अगर आप भी किसी ऐसी ही परिस्थिति से गुज़र रहे हैं और ये पोस्ट आप में फिर से जीवन डाल सके तो मैं इसका उद्देश्य सार्थक मानूँगा।

साउथ अफ्रीका के Oscar Pistorius,जिनके गुटनो से नीचे पैर भी नहीं,2008 Summer Paralympics में 100,200 और 400 m race मैं गोल्डमेडल से सम्मानित हुए,तो मैं समझता हूं ये पूरा शरीर लेकर चलने वालों के लिए ये बताने को काफी है कि विकलांगता कहीं नही सिर्फ हमारे दिमाग में बैठी है,ये बात सिर्फ गोल्डमेडल की नही है वल्कि एक इंसान की ऐसी प्रबल इक्षाशक्ति की है जिसने अपनी इस डियाबिलिटी को अपनी कमजोरी मानकर हार नही मानी और विस्व को एक नया संदेश दिया कि टूटने लगे होंसला तो ये याद रखना बिना मेहनत के तख्तो-ताज नहीं मिलते,ढूंढ लेते हैं अंधेरों में भी मंज़िल अपनी,जुगनू कभी रौशनी के मोहताज़ नहीं होते।"

Motivational Post = @motivate_videos



Start Unknown Finished Unforgettable




Just Because Most Don't Make It,Doen't Mean You Can't.




Be The One Who Decided Go For It...












अपने जीवन के हर पल को उत्साह के साथ जियें,जब भी अपने अंदर नकार्रत्मक खयाल आएं तो उन लोगों को याद करें जो चल नहीं सकते लेकिन उनकी दौड़ने की तीव्र इक्षाशक्ति है,अपने जीवन से कभी निराश न हों,जिंदगी कुदरत का दिया हुआ एक अद्भुत उपहार है हर पल को खूबसूरती से जियें।

समय आपके विपरीत हो सकता है लेकिन आपके पास अब भी सकारात्मक ढंग से सबकुछ बदलने की अद्भुत और असीमित छामताएँ हैं। अक्सर हमारे सामने मुसीबते आती है तो हम उनके सामने पस्त हो जाते है। उस समय हमे कुछ समझ नहीं आता की क्या सही है और क्या गलत। हर व्यक्ति का परिस्थितियो को देखने का नज़रिया अलग अलग होता है। कई बार हमारी ज़िंदगी मे मुसीबतों का पहाड़ टूट पढ़ता है। उस कठिन समय मे कुछ लोग टूट जाते है तो कुछ संभाल जाते है।

मनोविज्ञान के अनुसार इंसान किसी भी problem को दो तरीको से देखता है;
1.समस्या पर केंद्रित होकर
2.समाधान पर केंद्रित होकर

समस्या पर केंद्रित होने वाले अक्सर मुसीबतों मे ढेर हो जाते है। इस तरीके के इंसान किसी भी मुसीबत मे उसके हल के बजाये उस मुसीबत के बारे मे ज्यादा सोचते है।और उनसे घिरे रहते है पर उन तरीकों पर काम नही करते जिनसे उन्हें उस मुसीबत से बाहर निकलना है वल्कि समस्याओं को और जटिल बनाते रहते हैं।

वही दूसरी ओर समाधान पर केंद्रित होने वाले लोग मुसीबतों मे उसके हल के बारे मे ज्यादा सोचते है। इस तरह के इंसान मुसीबतों का डट के सामना करते है।और अंत में सफलता प्राप्त करते हैं।

चलिए एक रियल लाइफ उदाहरण लेते हैं,जब कभी भी आप ट्रैफिक में फँस जाते हो तो आप क्या करते हो,अपनी गाड़ी को धीरे धीरे आगे बढ़ाते रहते हो और ऐसा करते करते आप वहां से निकल जाते हो,उस दौरान आप देखोगे जहां ट्रैफिक पुलिस या ट्रैफिक सिग्नल नही होता वहां कुछ लोग जाम को और बढ़ा रहे होते हैं तब आपको गुस्सा भी आती होगी हैं न।
लेकिन जब जाम भयंकर हो जाता है तब हम आप में से ही कोई इशारे कर करके उस जाम से निकलने का उपाय भी कर रहा होता है ऐसा करने से स्थिति सामान्य होने लगती है।

बस ऐसा ही तो हमें लाइफ में ही करना होता है,धीरे धीरे बस प्रयास करते रहो और एक वक्त आएगा आप उस प्रोब्लेम्स के ट्रैफिक से बाहर निकल आओगे।यानि रुकना नही है अगर आप ट्रैफिक मैं भी रुक गए तो क्या होगा और गाड़ियों के जाम में आप फिर से फँस जाओगे।में देखता हूँ दुनिया में हर जगह अशांति,डिप्रेशन क्यों है और ये एक की गलती की सज़ा दूसरे को भुगतने पर खत्म नही होता और बढ़ता है।क्या वो इंसान अगर खुद उसको सज़ा दे देगा तो क्या वो सुखी हो जाएगा।नही लेकिन अफसोस हमेशा बाद में होता है,बदले की भावना से आज तक किसी का कुछ अच्छा नही हुआ लेकिन मनुष्य अपने स्वभाव से मजबूर है।अशांति है कहाँ हमारे भीतर ही है,जब बाहर किसी के साथ अन्याय हो रहा होता है तब हम वीडियोग्राफी मैं इंटरेस्ट रखते हैं,लेकिन जब खुदके साथ वही अन्याय हो रहा होता है तब सोचते हैं कोई काम नही आता।

सच तो ये है कि दुनिया को देखने का नज़रिया हमारा अलग है,जब दूसरे के साथ हो तो हमें क्या मतलब ये उसका मामला है,और जब खुदके साथ हो तो हम बोखला जाते हैं और कुछ गलत कदम उठाने में एक पल भी नही सोचते।
क्या हम जिन्हें पराया यानी दुनिया कहते हैं उसे अपना नही मानते,या हमें तकलीफ सिर्फ अपनो से ही होती है।
अगर हम दुनिया में सभी मैं अपने देखेंगे तो दुनिया से बुराई खत्म हो जाएगी लेकिन हम खुद ऐसा नही कर सकते क्योंकि हम नही चाहते कि दुनिया से बुराई खत्म हो।मैं जब घर से बाहर जाता हूँ तो ये सोचके नही जाता कि ये बाहरवाले हैं,में सोचता हूँ कि इस शरीर को तो एक न एक दिन मुझे छोड़ना ही है क्यों न में इस सारी दुनिया मैं सभी को वेसे ही देखूं जैसा में खुदके लिए चाहता हूं।हो सकता है मेरा उनसे खून का रिश्ता न हो,लेकिन जो तकलीफ मुझे होती है वो उन्हें भी होती है तो निश्चित ही वो मेरे जैसे ही हैं।में जब फ़ोन पर आपलोगों से बात करता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है कि अगर ये मेरे पास किसी परेशानी को लेकर आये हैं तो ये उनकी नही मेरी है।

में उसे खुदपर रखकर देखता हूँ कि अगर मैं इस परेशानी में होऊंगा तो क्या निर्णय लूंगा,जब मैं ऐसा करता हूँ तो उपाय भी मुझे वेसे ही मिलते हैं। वजह ये नही है कि दुनिया में बुराई क्यों है,वल्कि अच्छे लोग अपना काम ढंग से नहीं कर रहे होते हैं. हम हर बार इसके लिए कानून को,देश को दोष नही दे सकते। बुराई से भूख,गरीबी,अशिक्षा,धोखा,क्लेश और अशांति पैदा होती है अच्छाई से शिक्षा,समृद्धि,विकास और सुख का जन्म होता है। आप कितने कीमती हो इसे मैं ऐसे कह सकता हूँ कि एक इंसान करोड़ों रुपये बना सकता है पर करोड़ों रुपए एक इंसान नही बना सकते।तो आप समझ सकते हैं कि कीमती कौन है।

चिंता इतनी कीजिये कि काम हो जाए,पर इतनी नही कि जिंदगी तमाम हो जाए. नापोलियन बोनापार्ट जो फ़्रांस के एक महान निडर और साहसी शासक थे जिनके जीवन मे असंभव नाम का कोई शब्द नहीं था। इतिहास में नेपोलियन को विश्व के सबसे महान और अजय सेनापतियों में से एक गिना जाता है। वह इतिहास के सबसे महान विजेताओं में से माने जाते थे । उसके सामने कोई रुक नहीं पाता था।

नेपोलियन अक्सर जोखिम (risky) भरे काम किया करते थे। एक बार उन्होने आलपास पर्वत को पार करने का ऐलान किया और अपनी सेना के साथ चल पढे। सामने एक विशाल और गगनचुम्बी पहाड़ खड़ा था जिसपर चढ़ाई करना असंभव था। उसकी सेना मे अचानक हलचल की स्थिति पैदा हो गई। फिर भी उसने अपनी सेना को उसपर चढ़ने का आदेश दिया। पास मे ही एक बुजुर्ग औरत खड़ी थी। 

उसने जैसे ही यह सुना वो उसके पास आकर बोले की क्यो मरना चाहते हो। यहा जितने भी लोग आये है वो मुह की खाकर यही रहे गये। अगर अपनी ज़िंदगी से प्यार है तो वापिस चले जाओ। उस औरत की यह बात सुनकर नेपोलियन नाराज़ होने की बजाये प्रेरित हुए और झट से हीरो का हार उतारकर उस बुजुर्ग महिला को पहना दिया और फिर बोले; आपने मेरा उत्साह दोगुना कर दिया और मुझे प्रेरित किया है। लेकिन अगर मै जिंदा बचा तो आप मेरी जय-जयकार करना। 

उस औरत ने नेपोलियन की बात सुनकर कहा- तुम पहले इंसान हो जो मेरी बात सुनकर हताश और निराश नहीं हुए। ‘ जो आर या पार‘ या मुसीबतों का सामना करने का इरादा रखते है, वह लोग कभी नही हारते।
अगर कोई आपसे कहे कि ये काम आसान नही है तो बिल्कुल मत घबराना,बेशक वो आसान न हो लेकिन नामुमकिन नही है।

मुझे ऐसे कमेंट मिले की मेरा काम में मन नही लगता,किसी काम पर फोकस नही हो पाता,psychologically देखें तो हमारा किसी काम पर फोकस नही हो पाता, सोचो ऐसा क्यों होता होगा।आप ड्रिंक किये हुए इंसान में भी ये खूबियां आसानी से नोटिस कर सकते हैं,वो सबसे पहले अगर फ़ोन है तो फ़ोन पकड़ेगा अन्यथा अगर बाइक है तो ये कहेगा भाई आज बाइक में चलाऊंगा तू पीछे बेथ,और सामने वाला,नही भाई बाइक मै हीं चलाऊंगा तू पीछे बैठ।

Human value and ethics ये बताती है कि हमारा किसी भी काम पर फोकस न होने की वजहों मैं एक ये भी है कि हम आज मैं यानी अभी मैं नही जी रहे होते हैं।

अब ये क्या है?

इसे ऐसे समझते हैं कि आपका कोई दोस्त या परिचय वाला जिसे आपने अपने पास बुलाया,अब सामने होकर भी वो आपके करीब नही है यानी वो फ़ोन पकड़े है कही बार बार फेसबुक खोलेगा या व्हाट्सअप चेक करेगा या किसी को कॉल लगाने लगेगा। मतलब वो फिजिकली आपके पास है पर मानसिक रूप से वो वहां पूरी तरह से नही।
अब वो वहां से चला गया और उस इंसान से मिला जिस से वो आपसे मिलने के दौरान चैट कर रहा था तब वो वहां भी ऐसा करता है अब वो आपका मैसेज चेक करेगा।उसको समय नही देगा।

हमारा फोकस न होने की वजह भी इसी में है।

यानी हमें कोई भी काम तभी करना चाहिए जब हम उसके लिए फिजिकली और मेंटली दोनो रूप में उपस्थित रह सकें।
यानि अगर आप अपने दोस्त से मिले हैं तो सबसे बहुमूल्य अभी वही है जो आपके सामने है अगर ऐसा नही है तो आपको उसके सामने होना ही नही चाहिए था।हम खुद ऐसा करते हैं और खुदके काम खराब कर लेते हैं।इसका सही सलूशन यही है कि अभी जो सामने है वही सबसे महत्वपूर्ण है इसलिए अपना सारा फोकस उसी पर करें।आप analyse करें कि आप कितनी बार ऐसा करते हैं सामने वाला भी ऐसा ही करता है हैं न। मतलब पॉकेट से फ़ोन निकाला आपसे भी बात हो रही है और फ़ोन पर उंगलियां भी चल रही होंगी।आधा ध्यान आपकी ओर आधा धयान दूसरे की ओर।
मतलब में ये भी कर लूं वो भी कर लूं सब कर लूं।

यही सब कर तो रहे हैं फिर शिकायत क्यों।

वजय इसके आपको जो भी काम या इंसान सामने मिले आप अगर अपने व्यक्तित्व को सम्पन बनाना चाहते हैं तो पहले उसी को समय दें और अपना बेस्ट दें।

वरना आप वहीं सिमट जाएंगे कि वो मिला तो पर फ़ोन से ही फुरसत नही थी उसे,क्या फायदा निकला मिलने का भी।दूसरे केस में आपने पूरा फोकस किया तो सामने वाला इंसान आपसे काफी प्रभावित होगा और आगे भी वो आपसे जरूर मिलना चाहेगा क्योंकि उसे लगा कि आपने उसकी वैल्यू समझी,और उसे अपना समय दिया।अगर आप हमेशा एक काम पर ऐसे ही फोकस करेंगे तो ऐसे ही आपके और भी काम होंगे न। और होंगे तो सारे काम भी होंगे,और सारे काम होंग तो क्या होगा यानि हमेशा आप सफल होंगे।

हमेशा खुदको analse करें कि मेरी पर्सनालिटी से मेरे जीवन में कितना प्रभाव पड़ रहा है क्या मैं कुछ गलतियां कर रहा हूँ तो उसे ठीक करूँ।

अपने जितने भी सफल लोग देखेंगे उनके स्वभाव को जरा नोटिस कर analyse करना कि वो किसी से मिलते समय क्या एक्टिविटी कर रहे हैं

यदि हर कोई आप से खुश है तो ये निश्चित है कि आपने जीवन में बहुत से समझौते किये हैं और यदि आप सबसे खुश है तो ये निश्चित है कि आपने लोगों की बहुत सी ग़लतियों को नज़रअंदाज़ या माफ किया है.वर्तमान में खुश रहने का प्रयास करें,भविष्य आश्वासन देता है गारंटी नही.

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